मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009


परियों मै होने लगती है घबराहट****अप्सराओं की नुरानीहंसी से भी कंही ज्यादाख़ूबसूरत हें आपकीये दिलकश मुस्कराहटये पाकिजा ...मुस्कान हेंया फिर खुदा के आने की आहटउगते सूरज की लालिमा हेंया चौदहवी का चाँद हैये आपकी मुस्कुराहटदेख कर महसूस होती हैजिन्दगी के वापसआने की सरसराहटलाखो लोगो की उम्मीद हो तुमबेजान जिन्दगी की हो जगमगाहटकवि की कल्पना हो शायरों की गज़लसूफी संतों की तुम हो सुंदर लिखावटहंसते और मुस्कराते तो सभी हैमगर खुदा की नेमत है ये खिलखिलाहटनदी की लहरों का अल्हड़ता है इसमेंभीगी बरसातो की है ये तरावटइसमें खुदा का नूर दिखता हैऔर अंतर्मन की सजावटतुम बेनकाब मत मुस्कराया करोआसमानी परियों मे हो जाती है घबराहटचांदनी रात मे गरकभी जो हंस पडी तुमरखी रह जायगी चाँद की सारी सजावटखडा हो सामने गर दुश्मन का भी लश्करतो आ जायेगी उस पर भी कयामतइक इल्तिजा है मत जाया करो मंदिर तुमपुजारी भूल जाते है करना इबादतदेविया करने लगती है दर्शन तुम्हारेऔर देवता देने लगते है तुम्हे दावतमैय्यत देखो तो मुंह फेर लेना तुमजनाजे में होने लगती हें सुगबुगाहटइक हसीना की हंसी कामै दीवाना बन गयाखुद मेने सुनी थीमुर्दे के होठों की फुसफुसाहट

**लेखक -प्रदीप मिश्रा .....